(जीवन दिशा) नई दिल्ली, 9 जुलाई 2025: रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट) अधिनियम, 2016, जिसे आमतौर पर रेरा के नाम से जाना जाता है, को भारत में रियल एस्टेट क्षेत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने के लिए लागू किया गया था। लेकिन हाल के एक पोस्ट में, ‘द लीगल इटियन’ ने रेरा को ‘टूथलेस टाइगर’ करार दिया है, जिसका अर्थ है कि यह कानून कागजों पर मजबूत दिखता है, लेकिन व्यवहार में प्रभावी नहीं है।
पोस्ट के अनुसार, कई बिल्डर समय पर कब्जा देने में विफल रहते हैं, और रेरा इस पर सख्त कार्रवाई करने में असमर्थ है। उदाहरण के तौर पर, राज्य उपभोक्ता आयोग ने ₹50 लाख के मुआवजे का आदेश दिया, लेकिन इसे लागू कराने में कोर्ट और पुलिस दोनों नाकाम रहे हैं। यह सवाल उठता है कि क्या रेरा वास्तव में उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा कर पा रहा है?
हालांकि, कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि रेरा के पास मजबूत प्रावधान हैं। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 71 के तहत न्यायिक शक्तियां और धारा 72 के तहत ₹10,000 तक का जुर्माना या कारावास का प्रावधान है। सुप्रीम कोर्ट के इंपीरियल स्ट्रक्चर्स बनाम अनिल पतनी (2020) मामले में भी उपभोक्ता आयोग को मुआवजा और वास्तविक कार्रवाई का अधिकार दिया गया है। फिर भी, महाराष्ट्र में 18% रेरा आदेश लागू हुए, जबकि हरियाणा में यह आंकड़ा महज 0.4% रहा, जो रेरा की गैर-न्यायिक प्रकृति और आपराधिक प्रवर्तन शक्ति की कमी को दर्शाता है।
रेरा और उपभोक्ता अदालत के बीच तुलना करते हुए, पोस्ट सुझाव देता है कि उपभोक्ता अदालतें अधिक प्रभावी हो सकती हैं। ‘द लीगल इटियन’ ने अपने फॉलोअर्स से इस मुद्दे पर राय मांगी और रेरा को मजबूत करने के लिए सुझाव आमंत्रित किए।