ईश्वर भक्ति की ज्वलंत मिसाल: युवा संन्यासी “स्वामी विवेकानंद”- दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक एवं संचालक, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान)

(जीवन दिशा) स्वामी विवेकानंद – माँ भारती का एक ऐसा सपूत जो इस ग्रह मंडल पर सिर्फ 39 वर्ष जीया, लेकिन मानव सभ्यता के इतिहास पर एक अमिट छाप छोड़ गया! जो एक ‘युवा’ बनकर जीया और ‘युवा’ रूप में ही समाधिस्थ हो गया। जो विश्व भर के नौजवानों के लिए ‘नौजवानी’ की धड़कन बना! ‘विश्व धर्म सम्मेलन’ में जिसकी हाज़िरी ने दुनिया भर को झंझोड़ डाला था। हाँ, ऐसा ही था- वह अद्भुत युवा संन्यासी- स्वामी विवेकानंद! आज विश्व के लगभग सभी शब्दकोशों में स्वामी विवेकानंद का स्थान है। दुनिया विवेकानंद को जानती है। हमारा ‘राष्ट्रीय युवा दिवस’ इस युवा सन्यासी को समर्पित है। भारत भर के युवा एक ‘आदर्श युवा’ के रूप में स्वामी विवेकानंद को देखते हैं।
वह केवल भावनाओं के ही नहीं बल्कि व्यक्तित्व के भी धनी थे। उनका ईश्वर पर दृढ़ विश्वास केवल वाणी में नहीं बल्कि व्यक्तित्व से भी झलकता था। एक बार स्वामी विवेकानंद जी अमरीका में निर्भयता पर व्याख्यान दे रहे थे। कुछ युवकों ने उनके विचार सुने, तो सोचने लगे- ‘इस प्रकार निर्भयता पर बोलने वाले तो बहुत हैं। क्यों न इनकी परीक्षा ली जाए और समाज के सामने इनकी सत्यता को रखा जाए कि ये मात्र शब्द ही दे सकते हैं।’ यही सोचकर उन्होंने स्वामी जी को अपनी संस्था में प्रवचन देने के लिए आमंत्रित किया। स्वामी विवेकानंद जी ने सहर्ष स्वीकार कर लिया। निर्धारित समय व स्थान पर प्रवचन आरम्भ हुए। इस बार स्वामी जी का विषय रहा- ‘ईश्वर पर विश्वास’। वे बार-बार कह रहे थे, जो व्यक्ति ईश्वर पर विश्वास करता है, वह हर परिस्थिति व खतरे में भी निडर रहता है। तभी अचानक गोलियाँ चलनी आरम्भ हो गईं। सारी सभा में भगदड़ मच गई। लोग बाहर की ओर भागने लगे। कुछ चिल्लाने लगे। कुछ बेहोश हो गए।
परन्तु पूरी सभा में एक व्यक्ति दृढ़तापूर्वक पर्वत के समान अडिग खड़ा रहा। वे थे- स्वामी विवेकानंद। कई गोलियाँ उनके बहुत पास से निकलीं। परन्तु वे निश्चल खड़े रहे। कुछ समय बाद सब शांत हो गया। स्वामी विवेकानंद ने जहाँ प्रवचन रोके थे, वहीं से पुनः बोलना आरम्भ कर दिया। उनकी वाणी को सुनकर, लोग फिर से सभा में आने लगे। कुछ ही समय में पूरा हॉल दोबारा भर गया। स्वामी जी ने जब प्रवचन समाप्त किए, तो वे सभी युवक उनके पास आए और क्षमा माँगते हुए कहने लगे- ‘आपकी परीक्षा लेने के लिए हमने ही गोलियाँ चलाई थीं। परन्तु हम जान गए, आप निडरता के आदर्श हैं। हमें बताइए स्वामी जी, आप इतना धैर्य, इतना संयम कैसे रख पाए?’
स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराते हुए बोले- ‘क्योंकि मैं जानता था कि जो गोली ईश्वर ने मेरे लिए नहीं बनाई, वह मुझे नहीं लगेगी। और जो गोली ईश्वर ने मेरे लिए बनाई है, वह मुझे लगेगी ही लगेगी। वह तो अनके सुरक्षा आवरणों को चीर कर भी मुझे लग जाएगी। और यदि ईश्वर ने ही मेरा काल निश्चित किया हुआ है, तो उससे घबराना या डर कर भागना कैसा? इसलिए ईश्वर पर अडिग विश्वास रखो। धैर्य व संयम अपने आप आएगा।’ किसी ने सच ही कहा है- ‘दुःखी होना है, तो नीचे देखो। डरना है, तो भविष्य को ताको। खुश होना है, तो ऊपर देखो। ध्यान बाँटना है, तो आस-पास झांको। परन्तु यदि मुक्त होना है, तो ब्रह्मज्ञान द्वारा ईश्वर से जुड़ो। इसलिए चयन हमारा है कि हम अपने जीवन को किस ओर ले जाते हैं।’ दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सभी पाठकों को स्वामी विवेकानंद जयंती की हार्दिक शुभकामनाएँ।

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