जानिए दीपावली पर्व के ऐतिहासिक एवं पौराणिक महत्व और दीपावली पर्व मनाने के पीछे आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक कारण व दिवाली विशेष: पंचदिवसीय उल्लास “दीपावली पर्व” – दिव्य गुरु श्री आशुतोष महाराज जी (संस्थापक एवं संचालक, दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान)

(जीवन दिशा) सम्पूर्ण भारत प्रत्येक वर्ष दीपावली पर्व को बेहद हर्षोल्लास से मनाता है। तमसो मा ज्योतिर्गमय’ अर्थात् ‘अंधकार से प्रकाश की ओर’ की उपनिषदीय प्रार्थना को यह पर्व जीवंत करता है। इस दिन प्रभु श्री राम आसुरी शक्तियों का वध करके अयोध्या लौटे थे। सांकेतिक अर्थ यही है कि जीवन की दुःख भरी काली रात्रि में जब ईश्वर का पदार्पण हो जाता है, तो हर अशुभ घड़ी शुभ में परिवर्तित हो जाती है।

दीपावली का यह दिन अन्य अनेक शुभ कारणों को भी लिए हुए है-

1. इस दिन न केवल प्रभु राम रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे, अपितु इसी दिन तेरह साल बाद पाण्डवों का हस्तिनापुर लौटना हुआ था।
2. भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर इसी दिन हिरण्यकशिपु का वध किया था।
3. इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था।
4. जैन धर्म में इस दिन को ही महावीर जी के मोक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है।
5. इस दिन ही सिक्खों के छठे गुरु श्री हरगोबिन्द सिंह जी 52 अन्य राजाओं सहित कारागार से मुक्त हुए थे। इस कारण से सिक्ख भाई-बहन इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में धूमधाम से मनाते हैं।
6. स्वामी रामतीर्थ जी का जन्म व महाप्रयाण दोनों इसी दिन हुए थे।
7. इसी दिन आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती जी का निर्वाण हुआ था।
8. कठोपनिषद में नचिकेता का प्रसंग वर्णित है। उसके अनुसार बालक नचिकेता ने यमाचार्य के समक्ष आत्मज्ञान की जिज्ञासा रखी। यमाचार्य ने उसे ब्रह्मज्ञान प्रदान कर उसकी इस जिज्ञासा का शमन किया। नचिकेता सद्गुरु रूपी यमाचार्य से आत्मज्ञान प्राप्त कर यमलोक से भूलोक लौटा। उसके लौटने की खुशी में सभी नगरवासियों ने पूरे नगर में दीप जलाए। यह पावन घटना भी दीपावली के दिन ही घटी थी।

दीपावली को मनाने के उपरिलिखित अधिकांश कारणों से एक बात प्रखर रूप में उभर कर आती है। वह यह कि यह दिन मांगलिक इसलिए है क्योंकि इस दिन एक साधक को सद्गुरु की कृपा से ब्रह्मज्ञान प्राप्त होता है। फलतः उसके अंतर्घट में ईश्वर का पदार्पण होता है। ईश्वर के अलौकिक प्रकाश का दर्शन कर उसके दुःख रूपी सघन अंधकार का अंत होता है। चिंताओं के वन में जो लम्बे काल से वह वनवास भोग रहा था, उसका अंत होता है। अतः वह अथाह आनंद का अनुभव करता है। यदि वह दृढ़ता से सद्गुरु प्रदत्त ज्ञान पर चले, तो फिर यही दिन उसके निर्वाण, मुक्ति या मोक्ष का आधार तक बन जाता है।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार इसी दिन समुद्र मंथन से श्री लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं। इसलिए विशेष तौर पर इस दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है, ताकि हर घर में लक्ष्मी जी का वास हो। हमारे ज्ञानी-पूर्वजों के अनुसार केवल लक्ष्मी जी जीवन में मंगल नहीं ला सकतीं। इसलिए उनके साथ श्री गणेश और सरस्वती जी की पूजा का भी प्रावधान रखा गया। श्री गणेश विवेक के द्योतक हैं। उनकी पूजा कर हम प्रार्थना करते हैं कि वे हमारी बुद्धि को प्रकाशित कर धन को सद्कार्यों में लगाने के लिए प्रेरित करें। वहीं हंसवाहिनी और ज्ञानदायिनी माँ सरस्वती के पूजन द्वारा हम अपने मन को शुभ्र व पुनीत करने का संकल्प लेते हैं।

उड़ीसा व बंगाल में इस दिन माँ काली की पूजा भी की जाती है। माँ काली शक्ति का प्रतीक हैं, जिन्होंने सदैव आसुरी शक्तियों का विनाश कर भद्र पुरुषों का उद्धार किया। ठीक इसी तरह से धन के आने पर मद में चूर हो हम धन का दुरुपयोग न करें, अपनी शक्ति का सदुपयोग करें, यही प्रेरणा माँ काली हमें देती हैं। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से सभी पाठकों को दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ

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