नवदुर्गा और नवग्रह उपासना विधान

(जीवन दिशा न्यूज़) तांत्रिक ग्रन्थों में यह बताया गया है कि नवदुर्गा नवग्रहों के लिए ही प्रवर्तित हुईं हैं — ” नौरत्नचण्डीखेटाश्च जाता निधिनाह्ढवाप्तोह्ढवगुण्ठ देव्या “|| अर्थात् :- नौ रत्न, नौ ग्रहों की पीड़ा से मुक्ति, नौ निधि की प्राप्ति, नौ दुर्गा के अनुष्ठान से सर्वथा सम्भव है |

• सूर्य कृत पीड़ा की शान्ति के लिए शैलपुत्री,
• चन्द्रमा कृत पीड़ा की शान्ति के लिए ब्रह्मचारिणी,
• मंगल कृत पीड़ा की शान्ति के लिए चन्द्रघण्टा,
• बुध कृत पीड़ा की शान्ति के लिए कूष्माण्डा,
• गुरु कृत पीड़ा की शान्ति के लिए स्कन्दमाता,
• शुक्र कृत पीड़ा की शान्ति के लिए कात्यायनी,
• शनि कृत पीड़ा की शान्ति के लिए कालरात्रि,
• राहु कृत पीड़ा की शान्ति के लिए महागौरी, तथा
• केतु कृत पीड़ा की शान्ति के लिए सिद्धिदात्री ] अर्थात् :- जिस ग्रह की पीड़ा, कष्ट हो उससे संबंधित माँ दुर्गा के स्वरूप
की पूजा विधि-विधान से करने पर अवश्य ही शान्ति प्राप्त होती है।

नौ ग्रहों का दुष्‍प्रभाव कम करने के लिए करें दुर्गा पूजा
नवरात्रि पर मां के शक्ति स्‍वरूपों की पूजा की जाती ह‍ै और इसी समय नवग्रहों के दुष्‍प्रभाव को कम करने के लिए भी मां की विशेष पूजा करने का प्रावधान माना गया है…मां की नौ शक्तियों को जागृत करने के लिए मंत्र जाप करें I

मां दुर्गा की पूजा शक्ति उपासना का पर्व है और माना जाता है कि नवरात्रि में ब्रह्मांड के सारे ग्रह एकत्रित होकर सक्रिय हो जाते हैं I कई बार इन ग्रहों का दुष्‍प्रभाव मावन जीवन पर भी पड़ता है. इसी दुष्प्रभाव से बचने के लिए नवरात्रि में मां दुर्गा की पूजा की जाती है I मां की पूजा करने का विधि-विधान होता है और इस दौरान मां के विशेष मंत्रों का जप करने नवग्रह शांत होते हैं I

कौन-कौन से होते हैं यह मंत्र और कब, कैसे किया जाए इनका जाप जानें यहां : मां की शक्तियों का जाग्रत करने का मंत्र दुर्गा दुखों का नाश करने वाली देवी है, इसलिए नवरात्रि में जब उनकी पूजा आस्था, श्रद्धा से की जाती है तो उनकी नौ शक्तियां जागृत होकर नौ ग्रहों को नियंत्रित कर देती हैं I मां की इन नौ शक्तियों को जागृत करने के लिए ‘नवार्ण मंत्र’ का जाप किया जाता है. नव का अर्थ ‘नौ’ तथा अर्ण का अर्थ ‘अक्षर’ होता है. नवार्ण मंत्र: ‘ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे’ II

कैसे करता है नवग्रहों पर प्रभाव नवार्ण मंत्र का संबंध दुर्गा मां की एक-एक शक्ति से है और उस एक-एक शक्ति का संबंध एक-एक ग्रह से है II

1) सूर्य कृत पीड़ा की शान्ति के लिए शैलपुत्री :

नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में पहला अक्षर ऐं है, जो सूर्य ग्रह को नियंत्रित करता है I ऐं का संबंध दुर्गा की पहली शक्ति शैलपुत्री से है जिनकी उपासना ‘प्रथम नवरात्रि’ को की जाती है I

माँ दुर्गा के स्वरूप शैलपुत्री की ध्यान :-
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌ ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌ ॥

माँ दुर्गा के स्वरूप शैलपुत्री की स्रोत पाठ :-
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

2) चन्द्रमा कृत पीड़ा की शान्ति के लिए ब्रह्मचारिणी :

नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में दूसरा अक्षर ह्रीं है, जो चंद्रमा ग्रह को नियंत्रित करता है I इसका संबंध दुर्गा मां की दूसरी शक्ति ब्रह्मचारिणी से है जिनकी पूजा दूसरे दिन होती है I

मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ :-
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥

“मां ब्रह्मचारिणी का कवच”
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
अंग प्रत्यंग सतत पातु ब्रह्मचारिणी।

3) मंगल कृत पीड़ा की शान्ति के लिए चन्द्रघण्टा :

नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में तीसरा अक्षर क्लीं है, जो मंगल ग्रह को नियंत्रित करता है I इसका संबंध दुर्गा मां की तीसरे शक्ति चंद्रघंटा से है जिनकी पूजा तीसरे दिन होती है I

माँ दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की ध्यान :-
वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग-गदा-त्रिशूल-चापशर-पदम-कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

माँ दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की स्तोत्र पाठ :-
आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

4) बुध कृत पीड़ा की शान्ति के लिए कूष्माण्डा :

नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में चौथा अक्षर चा, जो बुध ग्रह को नियंत्रित करता है I इसका संबंध दुर्गा मां की चौथे शक्ति कुष्माण्डा से है जिनकी पूजा चौथे दिन होती है I

माँ दुर्गा के कूष्माण्डा स्वरूप की ध्यान :-
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु-चापबाण-पदम-सुधाकलश-चक्रगदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
कोमलांगी स्मेरमुखी श्रीकंटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

माँ दुर्गा के कूष्माण्डा स्वरूप की स्तोत्र पाठ :-
दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥

5) गुरु कृत पीड़ा की शान्ति के लिए स्कन्दमाता :

नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में पांचवां अक्षर मुं, जो बृहस्पति ग्रह को नियंत्रित करता है I इसका संबंध दुर्गा मां की पांचवें शक्ति स्कंदमाता से है जिनकी पूजा पांचवें दिन होती है I

माँ दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की ध्यान :-
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

माँ दुर्गा के स्कंदमाता स्वरूप की स्तोत्र पाठ :-
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥

6) शुक्र कृत पीड़ा की शान्ति के लिए कात्यायनी :

नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में छठा अक्षर डा, जो शुक्र ग्रह को नियंत्रित करता है I इसका संबंध दुर्गा मां की छठे शक्ति कात्यायिनी से है जिनकी पूजा छठे दिन होती है I

माँ दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की ध्यान :-
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥

माँ दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की स्तोत्र पाठ :-
कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

7) शनि कृत पीड़ा की शान्ति के लिए कालरात्रि :

नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में सातवां अक्षर यै, जो शनि ग्रह को नियंत्रित करता है I इसका संबंध दुर्गा मां की सातवें शक्ति कालरात्रि से है जिनकी पूजा सातवें दिन होती है I

माँ दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की ध्यान :-
करालवंदना धोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिं करालिंका दिव्यां विद्युतमाला विभूषिताम॥
दिव्यं लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयं वरदां चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम॥
महामेघ प्रभां श्यामां तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवं सचियन्तयेत् कालरात्रिं सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥

माँ दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की स्तोत्र पाठ :-
हीं कालरात्रि श्री कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं हीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥

8) राहु कृत पीड़ा की शान्ति के लिए महागौरी :

नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में आठवां अक्षर वि, जो राहु ग्रह को नियंत्रित करता है I इसका संबंध दुर्गा मां की आठवें शक्ति महागौरी से है जिनकी पूजा आठवें दिन होती है I

माँ दुर्गा के महागौरी स्वरूप की ध्यान :-
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥

माँ दुर्गा के महागौरी स्वरूप की स्तोत्र पाठ :-
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥

9) केतु कृत पीड़ा की शान्ति के लिए सिद्धिदात्री :

नवार्ण मंत्र के नौ अक्षरों में नौवा अक्षर चै, जो केतु ग्रह को नियंत्रित करता है I इसका संबंध दुर्गा मां की नौवें शक्ति सिद्धिदात्री से है जिनकी पूजा नौवें दिन होती है I

माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की ध्यान :-
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥

माँ दुर्गा के सिद्धिदात्री स्वरूप की स्तोत्र पाठ :-
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥

इस नवार्ण मंत्र के तीन देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं और इसकी तीन देवियां महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती हैं I नवार्ण मंत्र का जाप 108 दाने की माला पर कम से कम तीन बार अवश्य करना चाहिए I

Check Also

दिल्ली में सनसनीखेज डकैती: प्रिय ज्वेलर्स के कर्मचारियों पर हमला, 43 लाख के गहने लूटे

(जीवन दिशा) नई दिल्ली, : राजधानी दिल्ली के कोहाट मेट्रो स्टेशन, पीतमपुरा के पास एक …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds

Here can be your custom HTML or Shortcode

This will close in 20 seconds

This will close in 20 seconds